नागपत्री एक रहस्य(सीजन-2)-पार्ट-2
लक्षणा जहां तक तुम्हारे सवालों की बात की जाए तो शायद इसका समाधान वाकई किसी एक शास्त्र में मिल पाना संभव नहीं है, क्योंकि शास्त्र कोई साधन जुटाने का जरिया नहीं, वह ज्ञान का भंडार है जिसका अध्ययन कर कोई भी विद्यार्थी मनचाहे कृत्य कर सकता है।
उन विद्याओं का उपयोग वह ईश्वर को प्रसन्न कर सकता है, और मनचाहा वर प्राप्त कर सकता है, इनमें लिखे अनेकों भाग ऐसे भी है, जो अपने आप में सजीव जान पडते हैं, ठीक येसे ही जैसे तुम मुझे स्पर्श कर और देख सकती हो, ठीक उसी तरह उन भागों का अध्ययन कर कुछ ऐसी ही अनुभूति होती, इसलिए शास्त्रों को जब भी हाथ में लिया जाए, पूर्ण पवित्रता और स्वच्छता का ध्यान रखे जाने के निर्देश दिए जाते हैं।
ऐसा ना करने वाला पाठक या तो बालक हो सकता है, या अज्ञानी.... ज्ञानी पुरुष के द्वारा ऐसा व्यवहार किया जाना उसके अतीत में हो सकता है, लेकिन नहीं दृढ़ निश्चय ही अतिव्यस्त और सच्चे मन का प्राणी जिसे शास्त्रों में हर समय पवित्र होने की दशा में माना जाता है, वह आवश्यकतानुसार और कल्याण की भावना से कभी भी किसी शास्त्र को उठाकर शंका समाधान हेतु पढ़ने के लिए पूर्णरूप से स्वंत्रत है, क्योंकि उसका उद्देश्य कभी भी किसी का अहित करना या खुद के हित के लिए नही होता।
वह तो सिर्फ़ अपने याचक की मंशा पर शास्त्रों को हृदय से लगा यत्न पूर्ति हेतु उन्हें पढ़ता और सटीक शब्दों में विशेष भावार्थ के साथ लोक कल्याण हेतु याचक को समझाता है, उस समय उसके मन में तिल मात्र भी स्वयं सिद्धि का कोई उद्देश्य नहीं होता था, फिर भला कैसे वह दोषी हो सकता है??
लक्षणा इस प्रवृत्ति के मनुष्य को समय काल, शगुन, अपशगुन और सभी बाधाओं से भी मुक्त रखा गया है। इनके द्वारा किया हर कार्य बिना किसी समय परिधि के स्वीकार हैं, उसके लिए किसी भी तिथि, वार या ज्योतिषगणना की आवश्यकता नहीं होती।
लक्षणा मन से पवित्र व्यक्ति और ज्ञानी को तन की बनावट उसके वस्त्र या उसके दिखावटी व्यवहार से नहीं रखना चाहिए, वरन उसकी बातों के पीछे छिपे रहस्य, ज्ञान और संदेश को समझना ज्यादा हितकारी होता है, क्योंकि ऐसे व्यक्ति अकारण ही ना तो कोई निर्णय लेते हैं, और ना व्यर्थ में किसी को कोई सलाह देते हैं।
सरल शब्दों में यूं कह लो बिना ईश्वरीय शक्ति के आदेश के यह किसी से भी नहीं मिलते और ना ही कुछ कहते हैं, सिर्फ अपने आप में डूबे रहते हैं, मन और आत्मा को उस ईश्वरीय शक्ति के आदेश पर अथह सागर की गहराइयों की तरह उत्तम आनंद में डूबे रहते।
अच्छा लक्षणा तुमने तो "ओशियनोग्राफर" के बारे में सुना ही होगा, तुम्हें अपने ख्यालों के ठीक उनकी तरह सोचना और समझना होगा, अध्ययन करना होगा इससे संबंधित तथ्यों को जानने के लिए।
"ओशियनोग्राफर" यह कौन??? दादाजी मुस्कुराते हुए कहने लगे, हां यही तो एक बात है। आज की नौजवान पीढ़ी सिर्फ एक वेग में चलती है, कुछ हटकर सोचने के लिए उनके पास ना तो साधन है और ना ही समय।
यह वास्तव में समुद्र विज्ञान का अध्ययन करने का एक विज्ञान है, इसमें समुद्रों का अध्ययन किया जाता है जिसके अंतर्गत समुद्र, तटीय क्षेत्र, नदी मूख(एस्टयूरीय), तटीय जल, शेलटज और ओशन बेड, समुद्रीय जीव, समुद्र की धाराएं, तरंगे और भू भौतिकी, तरल गति की एवं अन्य विषयों का समावेशित रूप से अध्ययन किया जाता है।
इसके अध्ययन के लिए जीव विज्ञान, रसायन, विज्ञान, जियोलॉजी, भौतिकी और अन्य सबकी आवश्यकता होती है। इस क्षेत्र में काम करने वाले को ही "ओशियनोग्राफर" कहते हैं। "ओशियनोग्राफर" कभी न खत्म होने वाली जिज्ञासाओं का समंदर है, क्योंकि इस विशाल महासागर में अनेकों रहस्य छिपे है , जिसे मनुष्य जानने के लिए अनेकों गोते लगाता रहता है, और सचमुच हर बार कुछ ना कुछ नया उसके हाथ लगता है।
वह बारिकी से अपनी जांच को परखता है और कोशिश करता है कि क्या तटीय इलाकों में रहने वाले लोगों और जलवायु पर उसके इस खोज का कोई असर पड़ेगा, या वास्तव में खोज आधारित क्षेत्र है, इसलिए इसमें काम करने वाले लोगों को समुद्र के आसपास के इलाकों में एक लंबा समय गुजारना पड़ता है, और इस दौरान कई बार ऐसी रहस्यमई वस्तुओं और सजीवित चीजों का भी सामना इन लोगों से हो जाता है, जिसे यह लोग सिर्फ अपने तक ही सीमित रखते हैं, क्योंकि समुद्र के संपर्क में रहते रहते एक लंबे समय के दौरान इनका व्यवहार भी ठीक समुद्र की तरह हो जाता है। एक गहरी सोच और विशाल हृदय जिसे यदि टटोलकर देखा जाए तो ना जाने क्या-क्या निकलकर बाहर आएगा।
अब निर्भर करता है पात्र की भावना पर, यदि सात्विक हुआ तो अमृत की तरह उसे अमृत्तुल्य जानकारी मिलेगी, और यदि तामसिक या और अव्यवहारिक वयक्तितत्व हुआ तो वह कुटविष को भी प्राप्त कर सकता है, इसलिए कभी भी किसी भी ओशियनोग्राफर से मजाक करने या उसकी परीक्षा लेने की साथ मनाई है।
खासकर सीनियर वैज्ञानिकों से क्योंकि अक्सर उनके चेहरे पर स्थिरता के भाव होते हैं, और वे बहुत कम किसी से बात करने का मन रखते हैं।
इनके बारे में ऐसा भी कहा जाता है कि इनके पास कई चमत्कारिक शक्तियों के भी होने की संभावना हो सकती है, विकासशील देशों में ओशियनोग्राफर को काफी महत्व दिया जाता है, आजकल तो इसे अलग-अलग संकाओ (विषयों) में भी बांटने की शुरुआत हो चुकी है। जिनमें अब तक केमिकल ओशियनोग्राफर, जियोलॉजिकल ओशियनोग्राफर, फिजिकल ओशियनोग्राफर, मरिन बायोलॉजी मुख्य रूप से देखे गए हैं।
खैर छोड़ो मैं तो तुम्हें कुछ ज्यादा ही गराइयों में ले गया, मैं यह कहना चाहता था कि तुम्हारे सवालों के जवाब इतना कुछ पढ़ने के बाद मिले यह जरूरी नहीं हैं। तुम्हें मैं सिर्फ इतना ही कह सकता हूं कि शंख मात्र एक सागर में बसने वाला जलचर बनाया हुआ एक ढांचा नहीं, वह एक ऐसा सुक्ष्म रास्ता है, जो एक वायु की छोटी तरंग को चमत्कारिक रूप से परिवर्तित करने में सक्षम होता है, इसलिए शंख मात्र एक वस्तु नहीं अपितु एक साधन है, जिसे धारण करने वाला साधक पूर्ण श्रद्धा से मन से स्वीकार कर बजाएगा, तो उसमें अनेकों सुषुप्त द्वारों को खोलने की शक्ति स्वयं ही आ जाएगी।
फिर शास्त्रों में तो शंख को लक्ष्मी जी का भाई भी कहा गया है, इसलिए मंगल कार्यो के समय शंख ध्वनि को अपनी आराधना देवलोक तक पहुंचाने हेतु उपयोग किया जाता है
क्रमशः....
Mohammed urooj khan
21-Oct-2023 12:01 PM
👌🏾👌🏾👌🏾
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RISHITA
20-Oct-2023 10:43 AM
V nice
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Punam verma
20-Oct-2023 07:48 AM
Nice👍
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